Humayun Tomb-A Long Route Story.
शनिवार 18 फरवरी 2017, को जैसे तैसे सुबह सुबह जल्दी कॉलेज पहुचा।वहां जाकर पता चला कि आज कोई क्लास नही होगी।मन बैठ गया कि आज ही तो जल्दी उठा था ताकि क्लास ले सकू,ओर आज कोई क्लास नही होगी।ये सब सोच ही रहा था कि बाकी सब मित्र भी मुँह लटकाए आकर खड़े हो गए।
मनोज-यार आज आने का कोई फायदा नही हुआ कोई क्लास नही होगी।
मैं- हाँ! मुझे भी अभी मालूम पड़ा मेरा तो सुबह सुबह उठना व्यर्थ हो गया।
रोहित कुमार- भाई मेरा मन इस बात से नही टूटा की आज क्लास नही होगी,बल्कि दुख इस बात का है कि आज कॉलेज में लड़कियां कम आई है।अब बताओ कैसे मन लगेगा कॉलेज में।
मनोज-भाई ऐसा करते है घर चलते है।
मैं-अरे साले!तुझे तो आने से पहले घर जाने की जल्दी लगी रहती है।क्लास हुई नही की मुँह उठाकर घर की तरफ चल देता हूं।
मनोज-भाई तो अब क्या करे कुछ सोचा है।
सुनील-कही घूमने चलते है।
पंकज-हा भाई ये सही है कही घूमने चलते है टाइम पास भी हो जाएगा।
मैं-लेकिन जायेगे कहा?
पंकज-गूगल कर यही हमारा मार्गदर्शक है।
मैं-अच्छा रुक करता हूँ।
काफी देर तक मैं देखता रहा कि कहा जाया जाए,जो जगह हमने देखी न हो ।10-15 मिनट बाद मेरे मुंह से निकल हुमायूँ मकबरा(Humayun Tomb) चलते है।
सुभाष-भाई ये दिल्ली में ही है क्या?
पंकज-अरे! मुझे पता है मै लेकर चलूंगा।पीछे से बस मिलती है।
तो चलते है फिर किस बात की देर करना,सबने एक स्वर में कहा।
इतने में एक आवाज ने हमको रोक! रुको भाई कहा जा रहे हो मुझे छोड़कर,मैं भी चलूंगा।पीछे मुड़कर देखा तो अविनाश था।मैंने कहा कि क्या हुआ भाई आज हमारी याद कैसे आ गई लगता है आज तेरी टीम नही आई है।
अविनाश- हाँ भाई! आज कोई भी नही आया है।इसलिए मैं भी चलता हूं।
ठीक है भाई और हम सब चल दिये,एक ऐसे सफर की ओर जो इतना यादगार ओर मजेदार होने के साथ साथ परिश्रम से भरा होगा,इसके बारे में किसी ने सोचा न था।
बस स्टैंड पर एक घंटा खड़े रहने के बाद ये बात पूरी तरह समझ आ चुकी थी कि पंकज को नही पता है कौन से नंबर की बस जाएगी।अभी मैं सोच ही रहा था कि इतने में पंकज की आवाज आई! अबे चूतिये! जल्दी चढ़ जा बस छूट जाएगी।एकाएक मैं भागते हुए बस में चढ़ा।सबने अपनी अपनी सीट पकड़ी ओर सब पंकज के मुँह की ओर देख रहे थे मानो मन मे भाव था कि क्या ये बस सच में सही है?
थोड़ी देर में सुनील का धैर्य टूट जाता है और वो पूछ ही लेता है.....
सुनील-अरे पंकज,कहाँ पर उतरना है।
पंकज-रुक पूछ कर आता हूं कंडक्टर से।
सुनील-क्या मतलब तुझे नही आता कि ये बस कहा जाएगी।
पंकज जोर से मुस्कुराया ओर बोला कि अब जब निकल ही गये है तो पहुचेंगे जरूर।सब पंकज को इस भाव से देख रहे थे कि मानो उसने कोई बड़ा अपराध किया हो।पंकज कंडक्टर से पूछ कर आता है,कंडक्टर ने कहा हाँ जाएगी।हमे अभी भी यकीन नही हो रहा था तो पंकज ने कहा कि गूगल मैप पर देखते है अगर बस किसी दुुसरे रूट से गयी तो हम उतर जयेेंगे।
सुभाष का भाव था कि आज तो वह पहुच नही पायेगा।मनोज कह रहा था कि अच्छा भला घर जा रहा था इनके चक्कर मे फस गया।
इतने में पंकज ने आवाज लगाई की उतरो,उतरो,उतरो ये तो गलत रूट से जा रही है।सब जल्दी जल्दी जैसे तैसे बस से उतर गये।
(अक्सर कभी कभी टेक्नोलॉजी हम पर महेरबान नही होती।और खासकर तब जब हम इसकी सबसे ज्यादा आवश्कता हो।)
आपसी सहमति से सब इस बात पर सब सहमत हुए की पैदल ही चलते है गूगल मैप के पीछे पीछे।
चलते चलते 1 घंटे से ज्यादा समय बीत चुका था पर हुमायूँ का मकबरा दूर दूर तक नजर नही आ रहा था।
अविनाश-अरे भाई!इससे अच्छा तो मैं कॉलेज में ही रह लेता, तुमने तो चला चला कर मार ली।
सुनील-किसका विचार था यहां पर आने का?
मैंने कहा हम सब का।वो बोला तो क्या आज ही पहुच जायेगे?
मनोज-क्रोधित भाव मे! मैं पागल था जो तुम्हारे साथ आया।अभी तक घर जाकर सो गया होता।
सुभाष-साला आज के बाद बस से नही आऊंगा।नही पता तो मेट्रो सेे आनाा चाहये था भाई।
इन सबके बीच पंकज चुप था शायद वह जानता था कि यदि उसने कुछ कहा तो आरोप प्रत्यारोप शुरू हो जाएगा।
लगभग 2 घंटे होने को आये थे और मकबरे का कोई अता पता नही था।रास्ते मे कही निम्बू पानी पीते ताकि चलने की एनर्जी आ सके तो कही आइसक्रीम खाकर गर्मी को अपने से दूर रखने का प्रयास कर रहे थे।
"जनता हू आप सोच रहे होंगे कि फरवरी में किसको गर्मी लगती है और कहा आइसक्रीम मिलती है।लेकिन दिल्ली में हर चीज़ हर समय मौजूद होती है ।और जो खाली सड़को पर 2 घंटे से चला आ रहा हो उसको गर्मी लगना स्वाभाविक है।
हम ऐसे स्थान से गुजर रहे थे,जहाँ न तो दूर दूर तक कोई बस थी और न है ऑटो ई-रिक्शा ।
लगभग 5-6 किलोमीटर चलने के बाद हमे एक ऑटो वाले नजर आया। हमारी जान में जान आयी।हम सब हर चुके थे और अब एक कदम आगे चलने को तैयार नही थे।मैं आगे बढ़ा और ऑटो वाले से पूछा- भैया हुमायूँ का मकबरा चलोगे।
हाँ भैया! बिल्कुल चलेगे चलने के लिए ही तो बैठे है।
किन्तु जब मोल भाव पर बात आये तो हमने अपना विचार बदल दिया कि अब आगे भी पैदल ही जायेंगे।
'इतने में छोटू के मुँह से निकल गया कि इतना आ गए है थोड़ी दूर ओर सही।'
ऑटो वाला हमारे चेहरे के भाव पहले ही समझ चुका था,और इतने में उन्होंने अपने शब्दों से एक तीखा बाण हम पर छोड़ा।
"लगता है भैया घर से ही पैदल आ रहे हो"।ये सब सुनकर हमे महसूस हुआ कि मानो हमारे आत्मसम्मान पर प्रहार किया गया हो।अब हमारा दृढ संकल्प था कि चाहये कुछ हो जाये जायेगे तो पैदल ही।
जैसे तैसे ढाई घण्टे चलने के बाद हमे हुमायूँ के मकबरे के दर्शन हुए।हम सबने एक चैन की सांस ली,और एक स्वर में मुँह से निकला की भैया सफर बहुत बड़ा था।
अभी खुशी हमारे मुख पर ही थी कि इतने में मैं क्या देखता हूं कि एक बस हमारे सामने से जाती और ओर उस बस पर वही नंबर लिखा था जिससे पंकज ने ये कह कर उतार दिया था कि ये गलत जा रही है।सब ने पंकज को कोसा ओर कहा कि तेरे वजह से आज सबकी ऐसी तैसे हुई है। पंकज का सीधा सा जवाब था कि मेरे कोई गलती नही है ये गूगल मैप ही चु### है उसने ही गलत बताया था।
बहरहाल यहां गलती किसी की भी हो कोई फर्क नही पड़ता पर हां- सफर काफी लंबा और मजेदार था।
इसके बाद हम अंदर गए खूब मस्ती की ,और मुझे याद है की हमने 1000 से भी ज्यादा फ़ोटो खिंचवाई थी। सब बार बार इस सफर की बातों को लेकर एक दूसरे की टांग खिंच रहे थे।
मेरा अपना अनुभव है कि वो लाइफ का सबसे मजेदार ओर बेवकूफी वाला वाक्य था।इस सफर में कभी किसी की खिंचाई की गई तो,कभी सीरियस मुद्दों पर बात करना शुरू कर देते।कभी चलते चलते बैठ जाते तो कभी पूरी एनर्जी से आगे बढ़ते।
आज भी याद आते है वो पल की काश ज़िन्दगी थोड़ा और समय देती।अब सब अपनी लाइफ में अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गए है और शायद ही अब ऐसा कोई मौका मिले।इसलिए मुझे लगा कि इसे एक याद के तौर पर लिख लेना चाहिए।मकसद ये नही की मैं लिखना चाहता था बल्कि ये की जब जब कोई इस सफर को पढ़ेगा तो वह इन पालो को महसूस कर सकेगा।
हरिवंशराय बच्चन की ये पंक्तियां बहुत कुछ कह जाती है.
मैं यादों का किस्सा खोलू तो कुछ दोस्त बहुत याद आते है..
मैं गुजरे पलो को सोचु तो कुछ दोस्त बहुत याद आते है..
सबकी जिंदगी बदल गयी
एक नए साँचे में ढल गयी
सारे यार गुम हो गए
तू से तुम,ओर आप हो गए..
किनारों पर सागर के खजाने नही आते..
फिर ज़िन्दगी में दोस्त पुराने नही आते।
रोहित शर्मा